प्रथम विश्व युद्ध के पूर्व यूरोप, भाग-3 जर्मनी व इटली का एकीकरण में विषमता व यूरोप




किसी भी राष्ट्र का एकीकरण कुछ मूलभूत कारकों के साथ होता है जैसे- राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक व सैनिक । जहाँ जर्मनी का एकीकरण राजनीतिक,सैनिक व आर्थिक तीनों क्षेत्रों में हुआ था व चौथे अर्थात सामाजिक एकीकरण की प्रक्रिया निरन्तर चल रही थी वहीं इटली का एकीकरण केवल राजनीतिक रुप से हुआ था। आर्थिक, सामाजिक व सैनिक रुप से इटली में अभी भी विभाजन था और यह विभाजन अगले 40 वर्षों तक रहा। इटली के ऐसे एकीकरण में कैथोलिक चर्च, रोम के पोप, विभिन्न जातीय समुदाय की अलग-अलग भूमिका थी जिसकी चर्चा फ़िर कभी की जायेगी। एकीकरण के बाद भूमध्य सागर में इटली की सामरिक स्थिति मजबूत हो गई थी, किन्तु इस स्थिति का लाभ बहुत कम मिला। 

1880 के दशक में इटली में सत्ता प्राप्ति की होड़ शुरू हो गई थी। किसी भी मूल्य पर सत्ता प्राप्त करने को आतुर तत्कालीन राजनीतिक दलों ने अपने उन मूलभूत सिद्धांतों को भी त्याग दिया जो कभी उनकी उत्पत्ति का मूलाधार थे(जैसा कि हाल ही में महाराष्ट्र में एक दल ने किया)। इसका परिणाम यह हुआ कि इटली की तत्कालीन पीढ़ी में राजनीतिक जीवन के प्रति असन्तोष बढ़ने लगा। यह असन्तोष एक बड़े परिवर्तन की माँग से ही संतुष्ट हो सकता था फ़िर वो चाहे क्रान्ति से हो या युद्ध के द्वारा। अर्थात वहाँ भी जनमानस में युद्ध की इच्छा बनने लगी थी।

जर्मनी व इटली के एकीकरण से पूरे यूरोप में शक्ति सन्तुलन पर गहरा प्रभाव पड़ा। जहाँ केवल अब तक ब्रिटेन ही शक्तिशाली राज्य था वहाँ अब 2 और राज्य उभर चुके थे। उनका औद्योगिक विकास उन्हें बाजार खोजने के लिए विवश करने लगा था। चूंकि अधिकांश यूरोप में ब्रिटेन के बाजार बने हुए थे इसलिए इन नई शक्तियों को अपना बाजार खोजने के लिए कभी यूरोप तो कभी बाहर (अफ्रीका, एशिया,) निकलना पड़ा। उपनिवेश बनाने या बाजार खोजने के मार्ग में ब्रिटेन जो तत्समय विश्व की सबसे बड़ी जलसेना का स्वामी था, से उक्त दोनों शक्तियों की झड़प होने लगी थी।

यूरोप के शक्ति सन्तुलन के अतिरिक्त एक देश जो इस एकीकरण से अत्यधिक प्रभावित हुआ वह था आस्ट्रिया।....

मदन मोहन।। 

31 अगस्त, 2020

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